केन्द्र सरकार द्वारा पचास लाख (50,00,000) केन्द्रीय कर्मचारियों और इकसठ लाख (61,00,000) पेंशनभोगियो को दिये जाने वाले महंगाई भत्ता को जून-2021 तक रोकने का फैसला किया गया है। इस कटौती की वजह से केन्द्र और राज्य सरकार के खजाने को लगभग सवा लाख करोड़ रूपये की बचत होगी।
केन्द्र सरकार द्वारा कर्मचारियों के महंगाई भत्ते रोके जाने के विरूद्ध सेना के सेवा निवृत्त अधिकारी द्वारा दाखिल याचिका के साथ ही देश भर में प्रलाप व उवाच शुरू हो चुका है। सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों के अतिरिक्त एक पूर्व प्रधानमंत्री व अन्य दलों द्वारा विरोध करते हुए अपने-2 तरकश से ब्रह्मास्त्र तीर निकाल कर चलाते हुए इसे तुगलकी फरमान बताया जा रहा है और इस फैसले को अमानवीय व असंवेदनशील कहा जा रहा है।
एक राजनीतिक दल के सांसद द्वारा बुलेट ट्रेन और सेन्ट्रल विस्प परियोजना को भी निलंबित किये जाने की चर्चा की जा रही है। साथ ही याचिका में बिजनेस हाउस या औद्योगिक इकाईयों को वित्तीय सहायता देने पर रोक लगाने के आदेश दिये जाने की भी प्रार्थना है।
कोविड-19 महामारी के लिये प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के लिये 1.7 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा, लगभग बाइस लाख (22,00,000) सार्वजनिक स्वास्थ्यकर्मियों का पचास लाख (50,00,000) रूपये का बीमा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा ऐक्ट के अन्तर्गत अस्सी करोड़ (80,00,00,000) गरीब परिवारों को अगले तीन महीने की खाद्य सामग्री, प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अन्तर्गत 204 करोड़ महिला खाता धारकों को अगले तीन महीने के लिये 500 रूपये प्रति माह व आठ करोड़ गरीब परिवारों को आठ करोड़ गैस सिलि डर मुफ्त दिये जायेंगे। प्रधानमंत्री किसान योजना के अन्तर्गत 2,000 रू0 अप्रैल-2020 में पहली किस्त कुछ निश्चित आय वाले कर्मचारियों के भविष्य निधि खाते में 24 प्रतिशत मासिक वेतन जमा मनरेगा के अन्तर्गत मजदूरी 182 रूपये से बढ़ाकर 202 रूपये प्रतिदिन की नीति है।
आर0बी0आई0 द्वारा भी वित्तीय संकट को दूर करने के लिये रेपो रेट (वह दर जिस पर आर0बी0आई0 बैंकों को उधार देता है) 5.15 प्रतिशत से घटाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया गया है व रिवर्स रेपो रेट (जिस दर पर आर0बी0आई0 बैंकों से उधार लेता है) 4.9 प्रतिशत से 4.0 प्रतिशत कम कर दी गयी है।
ऐसी नीति से विकास को पुर्नजीवित करने और अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस के प्रभाव को कम करने के लिये मौद्रिक नीति का उदार रूख है। सी0आर0आर0 भी 4 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत तरलता हेतु की गयी है। उधारकर्ताओं, टर्म लोन आदि पर भी तीन महीने की मोहलत देने की अनुमति भी है व अनिवार्य वस्तुओं की जनता को लगातार उपलब्धता बनाये रखना भी है। यह अनुलाभ सूची तो बानगी भर है।
इसी मौद्रिक नीति से एकत्र खजाने व धनराशि से कोविड-19 कीटेस्टिंग लैबोरेट्रीज, अस्पताल, चिकित्सा अनुसंधान, मुफ्त सरकारी जांच व राज्यो में जांच जैसे निवारण व उपायों (चिकित्सीय उपकरणो, वेन्टीलेटर, दवाओं, ऑक्सीजन सिलेंडर) को किया जा रहा है एवं ऐसे तमाम उपायों व लॉकडाउन से प्रयास किया जा रहा है कि संक्रमण के फैलाव को सीमित करते हुए समाप्त किया जा सके। न अपितु इतना, सरकार का इन्हीं मौद्रिक नीति के आधार पर यह भी प्रयास है कि बिना आर्थिक रफ्तार को रोके समस्या को काबू पाया जा सके और इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उक्त मौद्रिक नीति की घोषणा है।
आज इस कठिन दौर में बिना किसी राजनीति के यह कहना व जानना आवश्यक है कि हमारे संविधान की मूल भावना ही कल्याणकारी राज्य पर आधारित है। कल्याणकारी राज्य वह संकल्पना है जिसमें अवसर की समानता, धन-सम्पत्ति के समान वितरण तथा ऐसे व्यक्ति जो अच्छे जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को स्वयं जुटा पाने में असमर्थ हैं, उनकी सहायता करने जैसे सिद्धान्तों पर आधारित है।
यह राजनीति का विषय हो सकता है कि देश की प्रगति में किसका योगदान कितना है और देश में किस धर्म व जाति के लोगों का देश की उन्नति व सुशासन में कितना सहयोग व भागीदारी है और कौन सा वर्ग अपनी-2 धर्म व जाति की जनसंख्या के सापेक्ष देश में उपलब्ध कुल संसाधनों का कितना प्रयोग कर रहा है या देश में उपलब्ध संसाधनों पर वरीयता अधिकार किसका और कितना है। परन्तु यह समय ऐसा नहीं है कि चिन्तन किया जा सके। देश की जनता को अपने सारे संशय दूर करने, अपने सारे प्रश्नों को पूंछे जाने व समस्त चिन्तन करने का अवसर प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार मिलता है। उस समय सभी संशयों, सभी प्रश्नों व तमाम चिन्तन के आधार पर सरकार चयन का अवसर उपलब्ध रहता है।
भारतवर्ष एक प्रजातांत्रिक देश होने के कारण यहां पर जनता द्वारा जनता के लिये चयनित शासन प्रणाली है और ऐसी चयनित सरकार द्वारा जनता के हित में नीति कल्याणकारी राज्य की संकल्पना को आधार पर रखकर बनाया जाना आवश्यक है और यह देखा जाना चाहिए की उक्त नीति मूल अधिकार व मूल संकल्पना के विरोध में न हो।
जहां तक सरकार द्वारा नीति-नियम बनाये जाने का प्रश्न है, यह प्रत्येक सरकार का विशेषाधिकार है और इस विशेषाधिकार का प्रयोग संविधान की मूल भावना के अनुरूप सरकार द्वारा किया जा रहा है। जहां तक वेतन, भत्ते, पेंशन का प्रश्न है, उसमें कटौती का नियमन अपने विशेषाधिकार के अन्तर्गत सरकार कर सकती है परन्तु यह एक विधि- निर्णय का प्रश्न हो सकता है परन्तु आकस्मिक कठिन परिस्थितियों का आंकलन करते समय सरकार अपनी अधिकारिता के अन्तर्गत सेवा सम्बन्धी नीति-नियम में अप्रत्याशित घटना धारा (Force Majeure Clause) का प्रयोग करते हुए वेतन, भत्ते व पेंशन में कटौती कर सकती है जो तर्कसगंत भी है क्योंकि प्रत्येक सेवा निश्चित रूप से संविदा विधि का प्रश्न भी है।
इस प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भी संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों के अन्तर्गत भी प्रजा का यह प्राथमिक दायित्व है कि देश व जनता की भलाई में बनाई गयी नीतियों का समर्थन मुक्त कंठ व हाथ से करे। यह हम सभी का न्यूनतम कर्तव्य व दायित्व है कि देश में चिकित्सा सुविधा के अभावों में काल कवलित हो रहे व बिना कई-2 दिन खाये जीने को विवश, ऐसे मजबूर व्यक्तियों व जनता के समर्थन में हम सभी खड़े रहें, न कि ऐसे कठिन समय में अपने तुच्छ लाभों को देखें। ऐसे समय में अपने तुच्छ लाभों की तिलांजली दिये जाने की आवश्यकता है।
हमारा यह भारतवर्ष वैदिक महर्षि दधीचि जैसे तपस्वी की सनातन संस्कृति का संवाहक है। जहां वैदिक महर्षि जिनका सिर इन्द्र द्वारा धड़ से अलग किये जाने के पश्चात् भी देवताओं व इन्द्रलोक के कल्याण और ’वृत्तासुर’ राक्षस के संहार हेतु वज्र के निर्माण हेतु अपनी अस्थियों को दान कर दिया था। मानव कल्याण के लिये इस महामानव द्वारा आत्म-त्याग और दानवीर कर्ण व राजा हर्षवर्धन का अद्भुत उदहारण ही भारतवर्ष की परम्परा है।
आज भारतवर्ष व समाज का सर्वहारा वर्ग ऐसी ही वैदिक सनातन संस्कृति व परम्परा की ओर बड़ी आशा भरी नजरों से आर्थिक रूप से सम्पन्न पूंजीपति (Bourgeoisie) की ओर ताक रहा है और देश की जनता की अपेक्षा है कि अपने हानि-लाभ व राजनीति से ऊपर उठकर समाज व देश को सहयोग करे।
जय भारत
जय हिन्द
I am a pensioner, I have not only contributed towards PM Cares fund , But happy to forget more Dearness Relief in coming days,and years for the sake of my country. And those who seems to be crying, are not doing any good to the country or to their own coming generations.