यह चिंतन का गंभीर विषय है व भारतवासियों का दायित्व है कि इस चक्रव्यूह और तिलिस्म को समझें कि अमेरिका असलियत में ढोल के अन्दर पोल है। वैश्विकरण के स्थान पर देश की उन्नति में योगदान दें, न की किसी अन्य देश के लिए वीजा की लाइन में खड़े रहें।
संयुक्त राज्य अमेरिका के मिनीयापोलिस में अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लाॅयड की पुलिस के द्वारा मौत से पूरे अमेरिका में हिंसक प्रदर्शन के साथ दंगें शुरू हो गये हैं। इस रंगभेद नस्लीय हिंसा के कारण मिनीयापोलिस में हजारों लोग कर्फ्यू के उपरान्त भी सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
अमेरिका में रंगभेद नस्लीय हिंसा का यह नया अध्याय नहीं है। विगत 60 वर्षों से नस्लीय हिंसा होती रही हैं। श्वेत-अश्वेत में टकराव होते रहते हैं। पुलिस द्वारा अश्वेत पुरूषों को सामान्य रूप से प्रताड़ित करने, जबरन पूछताछ करने पुलिस स्टेशन ले जाना, उन पर मुकदमें कायम कर देना बड़ा ही सामान्य घटनाक्रम है, जिसके कारण प्रदर्शन होते रहते हैं और शान्ति व्यवस्था भंग होती रहती है।
सन् 1907 में वाशिंगटन राज्य के बेलिंघम शहर में इस रंगभेद नस्लीय हिंसा का भीषण तांडव देखने को मिला था जिसमें इन गोरे लोगों की भीड़ ने भारतीय हिन्दूओं को घरों से जबरन बाहर निकाल कर बाहर फेंक दिया था एवं तमाम संपत्तियों को नष्ट कर दिया गया था और मूल्यवान सम्पत्तियों को लूट लिया गया। पुलिस ने पीड़ितों की सहायता करने के बजाय भारतीयों को घेरकर जबरदस्ती नगरपालिका गृह में यह कहकर बन्द कर दिया था कि यह उनकी सुरक्षा के लिए है और चार सौ से अधिक भारतीयों को बेलिंघम की जेल में बंद कर दिया था। जब दंगा पीड़ित कुछ भारतीय बेलिंघम छोड़कर वाशिंगटन राज्य एॅवरेट गये तो वहां भी उनके खिलाफ इसी प्रकार रंगभेद नस्लीय हिंसा हुई।
डेरेक चाउविन नाम के अमेरिकी पुलिस अधिकारी द्वारा 41 वर्षीय अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लाॅयड की पुलिस हिरासत में मृत्यु के कारण दंगे की वजह बना। प्रदर्शनकारियों द्वारा मिनीयापोलिस स्टेशन में आग लगा दी गई। कोलोराडो में गोलीबारी हुई। लुइसविले में प्रदर्शन और दंगे के कारण सात लोगों को गोली मार दी गई। यद्यपि डेरेक चाउविन व अन्य तीन को अधिकारियों को बर्खास्त करते हुए हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। अविकसित एवं विकासशील देशों की पुलिस पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं, परन्तु जब एक अतिविकसित, पूर्ण सभ्य व पूर्ण सभ्यता वाले सुपर पाॅवर देश में ऐसे हिंसक दंगे होते हैं तो आश्चर्य किया जाना स्वाभाविक है और दंगों के दौरान स्वयं पुलिस ने इमारतों, गाड़ियों में आग लगा दी हो और लूटपाट कर अफरा-तफरी मचा दी हो तो अविकसित एवं विकासशील देश की पुलिस और सुपर पाॅवर अमेरिका की पुलिस में क्या अन्तर रह जाता है।
अमेरिका अति विकसित और विश्व में सुपर पाॅवर के रूप में जाना जाने वाला देश है और ऐसी परिस्थितियों में अमेरिका के राष्ट्रपति की आपातकालीन सुरक्षा के लिए बंकर में जाना दंगों भयानकता बताने के लिए पर्याप्त है कि सुपर पावर के सुपर राष्ट्रपति को डर के कारण बंकर में जाना पड़ा और पेंटागन ने सेना की तैनाती के आदेश देने की बात कही है। जबकि सन् 2016 में सुपर राष्ट्रपति ने सी0एन0एन0 न्यूज चैनल से बातचीत में कहा था कि अगर पार्टी इतना भारी समर्थन होने के बावजूद मेरी उम्मीदवारी पर मुहर नहीं लगाती तो मेरे समर्थक दंगे भी कर सकते हैं, क्या यह तांडव उसी पुराने रंगमंच का कोई हिस्सा तो नहीं है।
यह राजनीति का वही खेल है जैसे अविकसित व विकासशील देशों में एक मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए दूसरा मुद्दा खड़ा किया जाता है। अमेरिका कोरोना के प्रभाव से सर्वाधिक प्रभावित देश है और सर्वाधिक मौतें भी कोरोना महामारी से अभी तक विश्व में अमेरिका में ही हुई हैं, और कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था भी घोर प्रभावित है, साथ ही चीन से तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति भी बनती दिख रही है और निकट भविष्य में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव भी होना है। शायद यह वही पैतरे जो तुच्छ समझे जाने वाले अविकसित व विकासशील देश अपनाते हैं वैसे ही पैतरे अतिविकसित अमेरिका जैसा देश अजमाने पर तुला हुआ है।
अविकसित एवं विकासशील देशों में अमेरिका जैसेे विकसित देशों में जाने की होड़ मची रहती है और लाखों व्यक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए वीजा पाने के लिए महीनों-सालों प्रयत्न करते रहते हैं और लाखों रूपये व समय अमेरिकी वीजा पाने के लिए खराब करते हैं। अमेरिका की उपरोक्त स्थितियों को देखते हुए यह बिल्कुल प्रतीत नहीं होता है कि अमेरिका एक सभ्य और सुसंस्कृत राष्ट्र है जबकि अमेरिका में बेरोजगारी दर 3.9 प्रतिशत सन् 2018 के अनुसार है जो कुल जनसंख्या 32.57 करोड़ का करीब सवा करोड़(1,27,05,927) से ज्यादा है। कोरोना महामारी के कारण बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती जा रही है।
वैश्वीकरण और इंटरनेट का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए कि ऐसी खबरें हम तक पहुंच रही हैं जिससे अमेरिकी तिलिस्म चकनाचूर हो रहा है। जैसी पुलिस की कार्यशैली अविकसित और विकासशील देशों की है वैसी ही कार्यशैली अमेरिकी पुलिस की है। जिस तरीके की राजनीतिक पैतरे अविकसित व विकासशील देश अपनाते हैं वैसे ही सुपर पाॅवर अपना रहा है और उसी तरीके की गंदी राजनीति केवल अपने ही देश में नहीं वरन् विश्व भर में प्रोत्साहित की जा रही है, जिसका कोरोना महामारी प्रत्यक्ष प्रमाण है।
ऐसी सुपर पाॅवर चाहे वह अमेरिका हो या चीन हो लाशों के ढेर पर खड़े होकर सुपर पावर बनने का प्रयत्न है, ऐसा प्रतीत होता है कि न तो इन देशों की कोई सभ्यता है, न ही कोई संस्कृति है, अमेरिका ऐसे राज्यों का संघ है जिस देश की अपनी कोई राजभाषा नहीं है, ऐसे देश की भारत जैसे देश की संस्कृति से इनकी कोई तुलना की जा सकती है सिर्फ एक बाह्य आवरण व तिलिस्म है जो इन देशों ने बना रखा है। ‘प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्‘ प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। सुपर पावर देशों की सभ्यता व संस्कृति परिलक्षित है।
ऐसी परिस्थितियों में यह चिंतन का गंभीर विषय है व भारतवासियों का दायित्व है कि इस चक्रव्यूह और तिलिस्म को समझें कि अमेरिका असलियत में ढोल के अन्दर पोल है। वैश्विकरण के स्थान पर देश की उन्नति में योगदान दें, न की किसी अन्य देश के लिए वीजा की लाइन में खड़े रहें। अब समय आ गया है कि अपने देश भारत को प्रत्येक कोण एवं दशा में चाहे वह अध्ययन-अध्यापन हो, अर्थव्यवस्था हो, कम्प्यूटर तकनीकि हो, परमाणु तकनीकि हो, कृषि व्यवस्था हो, उद्योग धंधे कल-कारखाने लगाने की बात हो, प्रत्येक क्षेत्र में शनैः-शनैः आत्मनिर्भरता की ओर जाना आवश्यक है। तभी वास्तविक रूप से भारत को विश्व में सुपर पावर बनाने के साथ अपनी प्राचीन सभ्यता, सस्कृति, संस्कार व परम्पराओं को संरक्षित किया जा सकेगा।
जय भारत,
जय हिन्द,
Realistic 👍👍👍🙏🙏